Power of Forgiveness – Article In Dainik Bhaskar 23rd Jan, 2021

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Power of Forgiveness – Article In Dainik Bhaskar 23rd Jan, 2021

An article was released on 23rd Jan, 2021 on the ‘Power of Forgiveness’ as taught to us by Lord Jesus Christ. Lord Christ is the presiding deity of our ‘Agnya Chakra’ or the 3rd Eye Chakra who opened the door to the Kingdom of God for mankind. All the incarnations, messengers of Gods, angels have always got the same message to tell – ‘Emancipation of humans from the bondage of of darkness, ignorance and illusion’!

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Relationship Between Different Religion and Kundalini

श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु खिस्त’ ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है । सर्वमान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय है, क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु ख़्रिस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु | संत रूपी पुष्प खिले । उन पुष्पों (विभूतियों) का परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम है। जहाँ जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए वहाँ वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया। परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) | वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध कुण्डलिनी शक्ति से हो सकता है यह बात सर्वसाधारण की समझ से परे है । मैं जिस स्थिति पर से आपको ये कह रही हूँ उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तन्त्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शारीरिक संयन्त्र ऊपर कही गई बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय आपका संयन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है उस समय आप ऊपर कही गयी बात को अनुभव कर सकते हैं । इसका अर्थ है आपको सहजयोग में आकर ‘पार होना’ आवश्यक है । ‘पार’ होने के बाद आप के हाथ से चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं । जो चीज़ सत्य है उसके लिए आपके हाथ में ठंडी-ठंडी चैतन्य की तरंगे (लहरियाँ) आएंगी और वह असत्य होगी तो गरम लहरें आएंगी | इसी तरह कोई चीज़ सत्य है कि नहीं इसे आप जान सकते हैं । अगर आप ने इसमें तत्त्व की बात जान ली तो आपके मस्तिष्क में आएगा कि ये सब एक ही धर्म के वृक्ष के | अनेक फूल हैं व आपस में एक ही शक्ति से सम्बन्धित हैं । कहने का अभिप्राय है कि अपने आपको हिन्दू या मुसलमान या ईसाई ऐसे अलग-अलग समझ कर आपस लड़ना मूर्खता में है।

जब कोई साधु-सन्त या परमेश्वर का अवतरण होता है तब अगर ऐसा प्रश्न पूछा जाए कि यह व्यक्ति क्या अवतारी, सन्त या पवित्र है? तो सहजयोग में लोगों द्वारा ऐसा सवाल पूछते ही तुरन्त एक सहजयोगी के हाथ पर ठंडी लहरें आ कर आप के प्रश्न का ‘हाँ’ में उत्तर मिलेगा।

He was all powerful, Crucification was a play

श्री ख्रिस्तजी के पास अनेक शक्तियाँ थी और उसी में एकादश रुद्र स्थित है । इतनी सारी शक्तियाँ पास में होने पर भी उन्होंने अपने आपको क्रास (सूली) पर लटकवा लिया। उन्होंने अपने आपको क्यों नहीं बचाया? श्री ख्रिस्त जी के पास इतनी शक्तियाँ थी कि वे उन्हें परेशान करने वालों का एक क्षण में हनन कर सकते थे । उनकी माँ श्री मेरी माता साक्षात् श्री आदिशक्ति थी। उस माँ से अपने बेटे पर हुए अत्याचार देखे नहीं गए। परन्तु परमेश्वर को एक नाटक करना था। सच बात तो ये है कि श्री ख्रिस्त सुख या दुःख, इसमें फॅसे हुए नहीं थे। उन्हें ये नाटक खेलना था। उनके लिए सब कुछ खेल था। वास्तव में जीजस ख्रिस्त सुख, दुःख से परे थे। उन्हें तो यह नाटक | अत्यन्त निपुणता से रचना था ।

अपने अहंभाव के कारण लोगों ने श्री ख्रिस्त को सूली पर चढ़ाया, क्योंकि कोई मनुष्य परमेश्वर का अवतार बन कर आ सकता है ये उनकी बुद्धि को मान्य नहीं था । उन्होंने अपने बौद्धिक अहंकार के कारण सत्य को ठुकराया। श्री ख्रिस्त ने ऐसा कौनसा अपराध किया कि जिससे उनको सूली पर लटकाया? उलटे उन्होंने दुनिया के कितने लोगों को अपनी शक्ति से ठीक किया। जग में सत्य का प्रचार किया। लोगों को अनेक अच्छी बातें सिखाई । लोगों को सुव्यवस्थित, सुसंस्कृत जीवन सिखाया । वे हमेशा प्यार की बातें करते थें । लोगों के लिए हमेशा अच्छाई करते हुए भी आपने उन्हें दुःख दिया, परेशान किया।

वह है उस समय लोगों की महामूर्खता, जिसके कारण इस महान व्यक्ति को सूली पर (फाँसी पर) चढ़ाया गया। इतनी मूर्खता कि ‘एक चोर को छोड़ दिया जाए या श्री ख्रिस्त को?’ जिन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाया वे कितने मूर्ख थे? ऐसे महामूर्ख लोगों को ठीक करने के लिए परमात्मा ने अपना सुपुत्र श्री ख्रिस्त को इस दुनिया में भेजा था पर उन्हें लोगों ने सूली पर चढ़ाया।

अभी भी यदि उन लोगों ने परमेश्वर से क्षमा माँगी कि ‘हे परमात्मा, आपके पवित्र तत्व को फाँसी देने के अपराध के कारण हमें आप क्षमा कीजिए। हमने आपका पवित्र तत्व नष्ट किया इसके लिए हमें माफ कीजिए।’ तो परमात्मा लोगों को तुरन्त माफ कर देंगे। परन्तु मनुष्य को क्षमा माँगना बड़ी कठिन बात लगती है।

God gave his son, we killed him and bloodied him….But we should not crucify again and again by having ego and no forgiveness…

We don’t recognize the saint or incarnation because of our EGO but after death

ऐसे ही नाना प्रकार के लोग करते रहते हैं । आप इतिहास पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि जब – जब परमेश्वर ने अवतरण लिया या सन्त-महात्माओं ने अवतरण लिया तब तब लोगों ने उन्हें कष्ट दिया है। उनसे सीखने के बजाय खुद मूर्खों की तरह बतर्ताव करते थे। कुछ महाराष्ट्र के सन्त श्रेष्ठ श्री तुकाराम महाराज या श्री ज्ञानेश्वर महाराज इनके साथ यही हुआ। वैसे ही श्री गुरुनानक, श्री मोहम्मद साहब इनके साथ भी उसी प्रकार हुआ। वह अनेक दुष्टता करता है। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सन्तों का पूजन किया है। आप श्री कबीर या श्री गुरुनानक की बात लीजिए। हर पल लोगों ने उन्हें सताया । इस दुनिया में लोगों ने आज तक हर एक सन्त को दुःख के सिवाय कुछ नहीं दिया।

जो सामने प्रत्यक्ष है उसका मनुष्य को ज्ञान नहीं होता है। बढ़े हुए अहंकार के कारण मनुष्य ‘स्व’ (आत्मा) के सच्चे अर्थ को भूल जाता है। अब देखिए, ‘स्वार्थ’ माने ‘स्व’ का अर्थ समझ लेना जरुरी है। आज गंगा जिस जगह बह रही है, और अगर आप किसी दूसरी जगह जाकर बैठ जाये और कहने लगें कि गंगा इधर से बह रही है और हम गंगा के किनारे बैठे हैं तो ये जिस तरह हास्यजनक होगा उसी तरह ये बात है। आपके सामने आज जो साक्षात है उसी को स्वीकार कीजिए। श्री ख्रिस्त के समय भी इसी तरह की स्थिति थी । उस समय श्री ख्रिस्त जी कुण्डलिनी जागरण के अनेक यत्न किये। परन्तु महा मुश्किल से केवल २१ व्यक्ति पार हुए । सहजयोग में हजारों पार हुए हैं। श्री ख्रिस्त उस समय बहुतों को पार करा सकते थे परन्तु उनके शिष्यों ने सोचा श्री क्रिस्त केवल बीमार लोगों को ठीक करते हैं। उसके अतिरिक्त कुछ है उसका उन्हें ज्ञान नहीं था। इसलिए उनके सारे शिष्य सभी तरह के बीमार लोगों को उनके पास ले जाते थे। श्री ख्रिस्त ने बहुत बार पानी पर चलकर दिखाया क्योंकि वे स्वयं प्रणव थे। ॐकार रूपी थे। इतना सब कुछ था । तब भी लोगों के दिमाग में नहीं आया कि श्री ख्रिस्त परमेश्वर के सुपुत्र थे। मुश्किल से उन्होंने कुछ मछुआरों को इकठ्ठा करके (क्योंकि और कोई लोग उनके साथ आने के लिए तैयार नहीं थे) बड़ी मुश्किल से उन्होंने उन लोगों को पार किया। पार होने के बाद ये लोग श्री ख्रिस्त के पास किसी न किसी बीमार को ठीक कराने ले आते थे । हमारे यहाँ सहजयोग में भी बहुत से बीमार लोग पार होकर ठीक हुए हैं

Tongues of Flames

ईसाई लोग श्री येशु ख्रिस्त के बारे में जो कुछ जानते हैं वह बायबल ग्रन्थ के कारण है । बाइबल ग्रन्थ बहुत ही गूढ़ (रहस्यमय) है। यह ग्रन्थ इतना गहन है कि अनेक लोग वह गूढ़ार्थ (गहन अर्थ) समझ नहीं सके। बाइबल में लिखा है कि ‘मैं तेरे पास ज्वालाओं की लपटों के रूप में आऊंगा ।’ इज़राइली (यहूदी) लोगों ने इसका ये मतलब लगाया कि जब परमात्मा का अवतरण होगा तब उनमें से चारों ओर आग की ज्वालायें फैलेंगी इसलिए वह उन्हें देख नहीं सकेंगे। वस्तुत: इसका सही मतलब ये है कि मेरा दर्शन आपको सहस्रार में होगा

Those who are not against me are with me

श्री येशु ख्रिस्त जी ने कहा है कि, ‘जो मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं।’ इसका मतलब है कि जो लोग मेरे विरोध में नहीं है वे मेरे साथ हैं। Does not mean to follow Christianity but means follow his teachings, which any religion person can do…

Biggest weapon Forgiveness

श्री ख्रिस्त जी ने बहुत ही सरल तरीके से आप में कौन -कौन सी शक्तियाँ हैं व कौन से आयुध हैं इसके बारे में कहा है। उन आयुधों में सर्वप्रथम ‘क्षमा’ करना है । वस्तुत: क्षमा बहुत बड़ा आयुध है क्योंकि उससे मनुष्य अहंकार से बचता है। अगर हमें किसी ने दु:ख दिया, परेशान किया या हमारा अपमान किया तो अपना मन बार बार यही बात सोचता रहता है और उद्विग्न रहता है। आप रात दिन उस मनुष्य के बारे में सोचते रहेंगे और बीती घटनायें याद कर के अपने आपको दुःख देते रहेंगे। इससे मुक्ति पाने के लिए सहजयोग में हम ऐसे मनुष्य को क्षमा करने के लिए कहते हैं । दूसरों को क्षमा करना, एक बड़ा आयुध श्री ख्रिस्त के कारण हमें प्राप्त हुआ है जिससे आप दूसरों के कारण होने वाली ये परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं। आपके कभी सिर में दर्द हो तो आप कोई दवाई | न लेकर, श्री ख्रिस्त की प्रार्थना करिए कि ‘इस दुनिया में जिस किसी ने मुझे कष्ट दिया है, परेशान किया है उन सबको माफ कीजिए’ तो आपका सर दर्द तुरन्त समाप्त हो जाएगा। लेकिन इसके लिए आपको सहजयोग में आकर कुण्डलिनी जागृत करवा कर पार होना आवश्यक है। उसका कारण है कि आज्ञा चक्र, जो आप में श्री ख्रिस्त तत्त्व है वह सहजयोग के माध्यम से कुण्डलिनी जागृति के पश्चात ही सक्रिय होता है, उसके बिना नहीं।

I am the door and path, not destination

ये चक्र इतना सूक्ष्म है कि डाक्टर भी इसे देख नहीं सकते । इस चक्र पर एक अतिसूक्ष्म द्वार है । इसलिए श्री ख्रिस्त ने कहा है कि ‘मैं द्वार हूँ’ इस अतिसूक्ष्म द्वार को पार करना आसान करने के लिए श्री ख्रिस्त ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया और स्वयं यह द्वार प्रथम पार किया ।

False Gurus and Agnya Chakra

10:9 I am the door. If anyone enters through me, he will be saved, and will come in and go out, and find pasture.
10:10 The thief comes only to steal and kill and destroy; I have come so that they may have life, and may have it abundantly.

Chapter 10 of St. John’s Gospel

जो लोग आपको गन्दी बातें सिखाते हैं या मूर्ख बनाते हैं उनके आप पाँव छूते हैं। मूर्खता की हद है! आजकल कोई भी ऐरे- गैरे गुरू बनते हैं, लोगों को ठगते हैं, लोगों से पैसे लूटते हैं। उनकी लोग वाह वाह (खुशामद, प्रशंसा) करते हैं। | | कोई सत्य बात कहकर लोगों को सच्चा मार्ग दिखाएगा तो उसकी कोई सुनता नहीं, उल्टे उसी पर गुस्सा मनुष्य हमेशा सत्य से दूर भागता है और असत्य से चिपका रहता है।

अनधिकृत गुरु के सामने झुकने अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है । इसी कारण जीजस ख्रिस्त ने अपना माथा चाहे जिस आदमी या स्थान के सामने झुकाने को मना किया है। ऐसा करने से हमने जो कुछ पाया है वह सब नष्ट हो जाता है। केवल परमेश्वरी अवतार के आगे ही अपना माथा टेकना चाहिए । दूसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे को झुकाना ठीक नहीं। किसी गलत स्थान के सम्मुख भी अपना माथा नहीं झुकाना चाहिए। ये बात बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आपने अपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया तो तुरन्त आपका आज्ञा चक्र पकड़ा जाएगा। सहजयोग में हमें दिखाई देता है, आजकल बहुत ही लोगों के आज्ञा चक्र खराब है। इसका कारण है लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरु को मानते हैं।

Ego and Agya Chakra

आपको ये जानकर कदाचित आश्चर्य होगा कि सहजयोग में कुण्डलिनी जागृति होना साधक के आज्ञा चक्र की अवस्था पर निर्भर करता है। आजकल लोगों में अहंकार बहुत ज्यादा है क्योंकि अनेक लोग अहंकारी प्रवृत्ति में खोये हैं। अहंकारी वृत्ति के कारण मनुष्य अपने सच्चे धर्म से विचलित हो जाते हैं और दिशाहारा (मार्ग से भटक जाना) होने के कारण वे अहंकार को बढ़ावा देने वाले कार्यों में रत रहते हैं। इस अहंकार से मुक्ति पाने के लिए येशु ख्रिस्त बहुत सहायक होते हैं ।

लोगों को जान लेना चाहिए कि अहंकार बहुत ही सूक्ष्म है । अब दूसरा प्रकार ये है कि अपने अहंकार के साथ लड़ना भी ठीक नहीं है । अहंकार से लड़ने से वह नष्ट नहीं होता है । वह अपने आप ( ‘स्व’) में समाना चाहिए । जिस समय अपना चित्त कुण्डलिनी पर केन्द्रित होता है व कुण्डलिनी अपने ब्रह्मरन्ध्र को छेदकर विराट में मिलती है उस समय अहंकार का विलय होता है। विराट शक्ति का अहंकार ही सच्चा अहंकार है। वास्तव में विराट ही वास्तविक अहंकार है । आपका अहंकार छूटता नहीं । आप जो करते हैं वह अहंकार है। अहंकरोति स: अहंकारः । आप अपने आप से पूछकर देखिए कि आप क्या करते हैं। किसी मृत वस्तु का आकार बदलने के सिवा आप क्या कर सकते हैं? किसी फूल से आप फल बना सकते हैं? ये नाक, ये मुँह, ये सुन्दर मनुष्य शरीर आपको प्राप्त हुआ है । ये कैसे हुआ है ? आप अमीबा से मनुष्य स्थिति को प्राप्त हुए हैं। ये कैसे हुआ है? परमेश्वर की असीम कृपा कि आपको ये सुन्दर मनुष्य देह प्राप्त हुआ है। क्या मानव इसका बदला चुका सकता है? आप ऐसा कोई जीवन्त कार्य कर सकते हैं क्या ? एक टेस्ट ट्यूब बेबी के है। निर्माण के बाद मनुष्य में इतने बड़े अहंकार का निर्माण हुआ है । उसमें भी वस्तुत: ये कार्य जीवन्त कार्य नहीं है । क्योंकि जिस प्रकार आप किसी पेड़ का cross breeding करते हैं, उसी प्रकार किसी जगह से एक जीवन्त जीव लेकर यह क्रिया की है। परन्तु इस बात का भी मनुष्य को कितना अहंकार है । चाँद पर पहुँच गए तो कितना अहंकार । जिसने चाँद-सूरज की तरह अनेक ग्रह बनाए और ये सृष्टि बनायी उनके सामने क्या आपका अहंकार? वास्तव में आपका अहंकार दाम्भिक है, झूठा है। उस विराट पुरुष का अहंकार सत्य है क्योंकि वही सब कुछ करता । है विराट पुरुष ही सब कुछ कर रहा है, ये समझ लेना चाहिए । तो श्री विराट पुरुष को ही सब कुछ करने दीजिए । आप एक यन्त्र की तरह हैं। समझ लीजिए मैं किसी माईक में से बोल रही हूँ व माईक में से मेरा बोला हुआ आप तक बह रहा है। माईक केवल साक्षी (माध्यम) है परन्तु बोलने का कार्य मेैं कर रही हूँ, वह शक्ति माइक से बह रही है। उसी भाँति आप एक परमेश्वर के यन्त्र है। उस विराट ने आपको बनाया है। तो उस विराट की शक्ति को आप में से बहने दो। उस ‘स्व’ का मतलब समझ लीजिए । यह मतलब समझने के लिए आज्ञा चक्र, जो बहत ही मुश्किल चक्र है और जिस पर अति सूक्ष्म तत्त्व ॐकार, प्रणव स्थित है, वही अर्थात श्री ख्रिस्त इस दुनिया में हुए

Materialism and Jesus Christ

श्री ख्रिस्त के जीवन से सीखने की एक बहत बड़ी बात है। वह है ‘जैसे रखूँ वैसे ही रहूँ’ उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बदला । उन्होंने अपने आपको सन्यासी समझ कर अपने को समाज से अलग नहीं किया। उल्टे वे शादी ब्याहों में गए। वहाँ उन्होंने स्वयं शादियों की व्यवस्था की। Birth in manger, son of carpenter…

The wine that Jesus made was not alcohol

बाइबल में लिखा है कि एक विवाह में एक बार उन्होंने पानी से अंगूर का रस निर्माण किया। ऐसा वर्णन बाइबल में है। अब मनुष्य ने केवल यही मतलब निकाला कि श्री ख्रिस्त ने पानी से शराब बनायी, अत: वह शराब पिया करते थे। आपने अगर हिब्रू भाषा का अध्ययन किया तो आपको मालूम होगा कि ‘वाइन’ माने शुद्ध ताजे अंगूर का रस उसका अर्थ दारू नहीं है ।

What is destination/Last judgement-Sahaja Yoga

श्री ख्रिस्त का कार्य था आपके आज्ञा चक्र को खोलकर आपके अहंकार को नष्ट करना । मेरा कार्य है आप की कुण्डलिनी शक्ति का जागरण कर के आपके सहस्रार का उसके (कुण्डलिनी शक्ति) द्वारा छेदन करना। ये समग्रता का कार्य होने के कारण हर एक के लिए मुझे ये करना है। मुझे समग्रता में श्री ख्रिस्त, श्री गुरुनानक, श्री जनक व ऐसे अनेक अवतरणों के बारे में कहना है। उसी प्रकार मुझे श्री कृष्ण, श्री राम , इन अवतारों के बारे में भी कहना है। उसी प्रकार श्री शिवजी के बारे में भी, क्योंकि इन सभी देव – देवताओं की शक्ति आप में है। अब समग्रता ( सामूहिक चेतना) घटित होने का समय आया है। कलियुग में जो कोई परमेश्वर को खोज रहे हैं उन्हें परमेश्वर प्राप्ति होने वाली है । और लाखों की संख्या में लोगों को यह प्राप्ति होगी । इसका सर्व न्याय भी कलियुग में होने वाला है। सहजयोग ही आखिरी न्याय (Last Judgement) है । इसके बारे में बाइबल में वर्णन है। सहजयोग में आने के बाद आपका न्याय (Judgement) होगा। परन्तु आपको सहजयोग में आने के बाद समर्पित होना बहुत जरुरी है क्योंकि सब कुछ प्राप्त होने के बाद उसमें टिक कर रहना व जमकर रहना, उसमें स्थिर होना, ये बहुत महत्त्वपूर्ण है। बहुत लोग हमें पूछते हैं, “माताजी हम स्थिर कब होंगे?” ये सवाल ऐसा है कि, समझ लीजिए आप किसी नाव में बैठकर जा रहे हैं। नाव स्थित हुई कि नहीं, ये आप जानते हैं। या ऐसा समझ लीजिए आप साईकिल चला रहे हैं । वह चलाते समय जब आप ड्रगमगाते नहीं है कि आप का सन्तुलन हो गया व आप जम गए। ये जिस प्रकार आपकी समझ में आता है उसी प्रकार सहजयोग में आकर स्थिर हो गए हैं, ये स्वयं आपकी समझ में आता है। यह निर्णय अपने आप ही करना है। जिस समय सहजयोग में आप स्थित होते हैं उस समय निर्विकल्पता प्रस्थापित होती है । जब तक कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार नहीं कर जाती तब तक निर्विचार स्थिति प्राप्त नहीं होती । साधक में निर्विचारिता प्राप्त होना, साधना की पहली सीढ़ी है। जिस समय कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार करती है, उस समय निर्विचारिता | स्थापित होती है । आज्ञा चक्र के ऊपर स्थित सूक्ष्म द्वार येशु ख्रिस्त की शक्ति से ही कुण्डलिनी शक्ति के लिए खोला जाता है और ये द्वार खोलने के लिए श्री ख्रिस्त की प्रार्थना ‘दी लार्डस् प्रेअर’ बोलनी पड़ती है । ये द्वारा पार करने के बाद कुण्डलिनी शक्ति अपने मस्तिष्क में जो तालू स्थान (limbic area) है उसमें प्रवेश करती है। उसी को परमात्मा का साम्राज्य कहते हैं। कुण्डलिनी जब इस राज्य में प्रवेश करती है तब ही निर्विचार स्थिति प्राप्त होती है। इस मस्तिष्क के limbic area में वे चक्र हैं जो शरीर के सात मुख्य चक्र व और अन्य उपचक्रों को संचालित करते हैं।

Thou Shall not have adulterous eyes

ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा अच्छे पवित्र धर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए । अपवित्र साहित्य बिलकुल नहीं पढ़ना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं ‘इसमें क्या हुआ? हमारा तो काम ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने पड़ते है जो पूर्णत: सही नहीं है ।’ परन्तु ऐसे अपवित्र कार्यों के कारण आँखे खराब हो जाती | हैं। मेरी ये समझ में नहीं आता कि जो बातें खराब है वह मनुष्य क्यों करता है? किसी अपवित्र व गरन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो सकता है। श्री ख्रिस्त ने बहुत ही जोर से कहा था कि आप व्यभिचार मत कीजिए । परन्तु आपसे कहती हूँ कि आप की नजर भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिए ।

सर्वप्रथम किसी भी स्त्री की तरफ बुरी दृष्टि से देखना महापाप है। आप ही सोचिए जो लोग रात दिन रास्ते चलते स्त्रियों की तरफ बुरी नजरों से देखते हैं वे कितना महापाप कर रहे हैं? श्री ख्रिस्त ने ये बातें २००० साल पहले आपको कही हैं ।

Rebirth and resurrection

श्री ख्रिस्त ने कहा कि अपना दोबारा जन्म होना चाहिए या आपको द्विज होना पड़ेगा। मनुष्य का दूसरा जन्म केवल कुण्डलिनी जागृति से ही हो सकता है । जब तक किसी की कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी तब तक वह दूसरे जन्म को प्राप्त नहीं होगा और जब तक आपका दूसरा जन्म नहीं होगा तब तक आप परमेश्वर को पहचान नहीं सकते। आप लोग पार होने के बाद बाइबल पढ़िए। आपको आश्चर्य होगा कि उस में ख्रिस्तजी ने सहजयोग की महत्ता कही है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। एक एक बात इतनी सूक्ष्मता में बताई है। परन्तु जिन लोगों को वह दृष्टि प्राप्त नहीं है वे इन सभी बातों को उल्टा स्वरूप दे रहे हैं। (मनमाने ढंग से उसकी व्याख्या कर रहे हैं।) वास्तव में बाप्तिस्म (baptism ) देने का अर्थ है कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना और उसके बाद उसे सहस्रार तक लाना, तद्नन्तर सहस्रार का छेदन कर परमेश्वरी शक्ति और अपनी कुण्डलिनी शक्ति का संयोग घटित करना। यही कुण्डलिनी शक्ति का आखिरी कार्य है ।

श्री ख्रिस्त ने सारी मनुष्य जाति के कल्याणार्थ व उद्धारार्थ जन्म लिया था | वे किसी जाति या समुदाय की निजी सम्पदा नहीं थे। वे स्वयं ॐकार रूपी प्रणव थे । सत्य थे। परमेश्वर के अन्य जो अवतरण हुए उनके शरीर | | पृथ्वी तत्त्व से बनाये गये थे। परन्तु श्री ख्रस्त का शरीर आत्म तत्त्व से बना था। और इसलिए मृत्यु के बाद उनका पुनरुत्थान हुआ। और उस पुनरुत्थान के बाद ही उनके शिष्यों ने जाना कि वे साक्षात् परमेश्वर थे । यदि लोग उनके उस स्वरूप को, अवतरण को पहचान कर अपनी आत्मोन्नति करें तो चारों तरफ आनन्द ही आनन्द होगा । आप सब लोग परमेश्वर के योग को प्राप्त हों । अनन्त आशीर्वाद !

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